#Intellectual vs thinker
There is only one thing that makes an intellectual 'thinker' and that is, a sense of responsibility towards society and standing against what seems wrong so that society can be motivated towards the truth.
The truth is that it is wrong to expect the leftists to be 'thinkers' because they are the only part of the class whose liquor and liquor arrangement at any point rests on the anti-Hindu stand but call themselves 'Hindu thinkers' Saying that Hindu intellectuals also consider it unhealthy to speak on these issues. For him, it is not about his level of things, but the truth is that even in his subconscious, the ghost of 'progressive intellectuals' is being snatched away.
There are also some intellectuals who, fearing trolls from here or there, put their presence on others' posts as likes. Hey, if you have the courage, then write your mind by putting a post yourself whether in support or opposition.
Seeing these events, they start 'Buddha Dhyan' by putting a curtain on their eyes.
I like Krishnjeevi, not Buddhaji, who, when the time comes, also has the liver to take arms and come to the field.
#बुद्धिजीवी_व_चिंतक_में_अंतर
एक ही चीज होती है जो एक बुद्धिजीवी को 'चिंतक' बनाती है और वह है , समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना व जो गलत दिखे उसके विरोध में खड़ा होना ताकि समाज को सत्य की ओर प्रेरित किया जा सके।
सच तो यह है कि वामपंथियों से 'चिंतक' होने की उम्मीद करना ही गलत है क्योंकि वह तो है ही उस वर्ग का हिस्सा जिसकी शराब और शवाब का इंतजाम किसी भी बिंदु पर हिंदू विरोधी स्टैंड पर ही टिका है लेकिन स्वयं को 'हिंदू चिंतक' कहने वाले हिंदू बुद्धिजीवी भी इन मुद्दों पर बोलना अपनी तौहीन समझते हैं। उनके लिए ये उनके स्तर की बातें नहीं पर सच ये है कि उनके अवचेतन में भी 'प्रगतिशील बुद्धिजीवी के तमगे' के छिन जाने का भूत सताता रहता है।
कुछ बुद्धजीवी ऐसे भी हैं जो इधर या उधर पक्ष के ट्रोल से डरकर अपनी हाजिरी दूसरों की पोस्ट पर लाइक के रूप में डालते हैं। अरे अगर हिम्मत है तो खुद पोस्ट डालकर अपने मन की बात लिखो चाहे समर्थन में हो या विरोध में हो।
ये घटनाओं को देखकर भी आँखों पर पर्दा डालकर 'बुद्धध्यान' करने लगते हैं।
मुझे बुद्धजीवी नहीं कृष्णजीवी पसंद हैं जो समय आने पर स्वयं शस्त्र लेकर मैदान में उतरने का जिगर भी रखते हों।
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